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लड़किया तो होती ही पराया धन है वो भला कब अपने माँ-बाप की होती है…

Kumar Gaurav
Kumar Gaurav
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एक लड़का एक लड़की दोनों दोनों कमिटेड रिलेशन में थे, प्यार में हजारो कसमे वादे खा चुके थे,जमाने के तमाम बंधन तोड़ चुके थे ,
एक दिन लड़की ने लड़के को बताया घरवाले उसकी शादी कही जबरन फिक्स रहे है उसने उन्हें खूब मनाने की कोशिश की लेकिन वो नहीं माने, इसलिए अब वो अपना सब कुछ छोड़ कर उसके पास आ रही है ,
लड़का सकपकाया थोडा सा हडबडाया , फिर पूछा ये सब इतनी जल्दी कैसे , लड़की बोली तुम फिकर न करो मेरे पास मेरी सेविंग के कुछ पैसे है और फिर तुम भी तो कोई जॉब करोगे ही, तभी तो हम अपना परिवार शुरू कर पायेंगे,
लड़का बोला यार मैं अभी तैयार नहीं हूँ , लड़की बोली अभी नहीं तो कब , कही तुम मुझे धोखा तो नहीं दे रहे हो, लड़का बोला बिलकुल नहीं ,अच्छा तुम आ जाओ मैं देखता हूँ,
लड़की घर से कुछ बहाना करके निकल आई लड़के के पास, पूरे ताव में छाती चौड़ा किये लड़का भी नियत स्थान पर खड़ा था , चेहरे से कठोर आत्मविश्वास टपक रहा था , ऐसा लगा जैसे एक ही पल में प्रेम प्रसंग के बीच आये इस ट्विस्टर को शांत करके सब कुछ सही कर देगा, और दोनों कमिटेड से मैरिड रिलेशन में चले जायेंगे,
लड़की ये देख मुस्कुराई , ख्वाब सच होते दिख ही रहे थे, मन में खुशियों के हजार लड्डू फूट ही रहे थे,,,
पर ये क्या लड़का तमतमाया और किसी पुरुषवादी अहंकार से प्रेरित एक गर्जना में कह बैठा, यहाँ क्यों आई हो ,
लड़की स्तब्ध ये क्या हो गया ,
लड़का बोला किसने कहा यहाँ आने को , कौन है यहाँ तुम्हारा,
लड़की हैरान , आँखों से अश्रु धारा निकल पड़ी और रुंधे हुए शब्दों से कहा…तुम तो हो न मेरे..,,मैंने तुम पर विश्वास किया है और इसी विश्वास के नाते तुमसे प्यार किया है….
लड़का बोला पर मैं नहीं करता विश्वास तुमपर,,,,
लड़की ने पूछा क्यों ?
लड़का अट्टहास करते हुए बोला, ‘अरे जो लड़की अपने माँ-बाप की न हो सकी वो मेरी क्या होगी , आज मेरे साथ घर छोड़कर भागने को तैयार है तो कल किसी और के साथ के लिए मुझे भी छोड़ जायेगी…लड़किया होती ही नहीं है भरोसे के लायक…’
धैर्य का बाँध टूट चूका था , आँखों के आंसू सूख चुके थे, प्यार के सारे भरम टूट चुके थे, कल तो जो शहद सी बाते करता था उसके अन्दर की कडवाहट सामने आ गई थी..
लड़का अभी अपने पुरुषवादी गुरुर में अट्टहास लगा ही रहा था कि ये क्या , आसमान टूटा , बिजली गिरी , ये कैसी कड़कड़ाहट थी जिसने लड़के के गाल पर अपनी छाप छोड़ दी थी…सारा माहौल थम सा गया, आस-पास से गुजरते लोग भी चौंक पड़े रुक गए ये देखने के लिए आखिर हुआ क्या….
,,,,,अरे नहीं ये तो उन नर्म हाथो के उंगलियों के निशान थे, जिन्हें अपने हाथो में लेकर लड़के ने इस दुनिया से अलग एक दुनिया बसाने के वादे किये थे…और जिसने एक करारे तमाचे के रूप में लड़के के गाल पर अपने निशाँ छोड़ दिए थे…
और उस भरी भीड़ में अपने कठोर शब्दों में लड़की ने ये सवाल पूछ ही लिया ,,,,””लड़किया होती ही कब अपने माँ-बाप की है ?, तुम्हारे इस पुरुष अस्तित्व अहंकारी समाज में लड़किया तो पैदा होते ही पराया धन मान ली जाती है जिसे एक दिन किसी अजनबी के घर ही जाना है, ब्याह के बाद तो उसका अपना घर भी उससे मेहमानों जैसा बर्ताव करने लगता है, मायके आये नहीं कि वापस ससुराल जाने का वक्त पूछने लगता है, कुल बढ़ाने, अपना परिवार बनाने, कमाने और परिवार चलाने का हक़ तो दूर की बात लड़की तो माँ-बाप को मरने के बाद मुखाग्नि भी नहीं दे सकती है, इस खोखले समाज ने लड़कियों को तो पूरी तरह से अपने माँ-बाप के लिए पराया ही बना दिया है,,, हमें अपना समझा ही कब गया है,,, और एक लड़की तो तुम्हारी माँ भी थी अपने पिता से जाकर पूछना आज भी उन्हें भरोसा है उनपर , देखना कही वो धोखेबाज लड़की किसी और के लिए तुम्हे और तुम्हारे पिता को छोड़कर कही चली न जाए….””
गजब,,,विस्मयकारी,अकल्पनीय,,,,अहंकारी पुरुषवादी सत्ता के गाल पर तमाचा तो अब पड़ा था ,
आँखे खुल गई,
लड़के ने माफ़ी मांगी , भूल सुधारने की कोशिश में लड़की के हाथ पकडे,,,,,
पर लड़की ने तो जैसे कोई फैसला ले लिया था, हाथ छुड़ाया और चली गई वापस उस घर में, जहाँ पराया धन मानकर उसे किसी अजनबी को देने को तैयारी चल रही थी और उसे जीने के लिए उस अन्धकार से समझौता करना ही थी जिसके बारे में वो कुछ नहीं जानती थी….

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